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प्राडा ने कोल्हापुरी चप्पलों से प्रेरित लिमिटेड-एडिशन फुटवियर लॉन्च किया, विवाद और सहयोग की नई दिशा


 

इटली के प्राडा ब्रांड का नया कदम और विवाद का समाधान

इटली के ग्लोबल लक्ज़री फैशन ब्रांड प्राडा ने भारतीय पारंपरिक कोल्हापुरी चप्पलों से प्रेरित एक लिमिटेड-एडिशन फुटवियर रेंज लॉन्च करने की घोषणा की है, जिसे ‘Prada Made in India – Inspired by Kolhapuri Chappals’ नाम दिया गया है।यह पहल उस विवाद के कुछ महीनों बाद आई है जब प्राडा पर पारंपरिक भारतीय चप्पलों की डिज़ाइन की नकल करने का आरोप लगा था।


विवाद की पृष्ठभूमि: कोल्हापुरी चप्पलों को लेकर आलोचना

2025 की मिलान फैशन वीक में प्राडा ने अपने पुरुषों के स्प्रिंग/समर 2026 कलेक्शन में ऐसी सैंडल पेश कीं, जो दिखने में पारंपरिक कोल्हापुरी चप्पलों जैसी ही थीं, लेकिन उन्हें केवल “लेदर फ्लैट सैंडल्स” के रूप में प्रस्तुत किया गया और उनके भारतीय मूल का कोई ज़िक्र नहीं किया गया था।ये सैंडल्स लगभग ₹1.16 लाख (लगभग $930) की कीमत पर दिखाई गईं, जबकि असली कोल्हापुरी चप्पलें भारतीय बाज़ार में ₹300–₹1500 में आसानी से मिलती हैं।

इस वजह से भारत में सोशल मीडिया पर तेज़ आलोचना हुई और कई लोगों ने इसे “सांस्कृतिक चोरी” और “कलात्मक शोषण” कहा, क्योंकि डिज़ाइन के लिए भारतीय कारीगरों और उनकी विरासत का कोई श्रेय नहीं दिया गया था।


प्राडा की प्रतिक्रिया और सहयोग की पहल

कड़ी आलोचना के बाद प्राडा ने स्वीकार किया कि उनके सैंडल्स पारंपरिक कोल्हापुरी चप्पलों से प्रेरित हैं और उन्होंने इसकी सांस्कृतिक महत्ता को सम्मान दिया। ब्रांड ने कहा कि वह स्थानीय भारतीय कारीगरों के साथ सहयोग और सम्मानजनक साझेदारी के लिए इच्छुक है।

इसके तहत प्राडा ने महाराष्ट्र और कर्नाटक में लगभग 2,000 जोड़ी चप्पलें बनाने का निर्णय लिया है, जिसके लिए उसने राज्य समर्थित संस्थाओं के साथ समझौते किए हैं। प्राडा के कॉर्पोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी हेड, लोरेंज़ो बर्टेली ने कहा कि वे भारतीय कारीगरों की कुशलता को अपनी मैन्युफैक्चरिंग तकनीक के साथ मिलाएंगे।


नई पहल की मुख्य बातें

🔹 बिक्री और लॉन्च:
यह नया कलेक्शन फरवरी 2026 से ऑनलाइन और प्राडा के दुनिया भर में 40 स्टोर्स में उपलब्ध होगा।

🔹 प्रशिक्षण और समर्थन:
• कुछ कारीगरों को प्राडा और महाराष्ट्र में सरकारी संस्था लिडकॉम द्वारा विशेष प्रशिक्षण मिलेगा।
• लगभग 200 कोल्हापुरी कारीगरों को इटली में तीन साल के लिए प्रशिक्षण दिया जाएगा, ताकि वे वैश्विक मानकों के अनुरूप डिज़ाइन और उत्पादन सीख सकें।
• महाराष्ट्र सरकार भी कारीगरों को वित्तीय सहायता प्रदान करेगी।

🔹 समझौता अवधि:
यह समझौता पाँच साल के लिए किया गया है, लेकिन समर्थन के साथ इसे आगे बढ़ाने की उम्मीद जताई गई है।


कोल्हापुरी चप्पल का सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व

कोल्हापुरी चप्पलें महाराष्ट्र के कोल्हापुर शहर का नाम लेकर विख्यात हैं। ये पारंपरिक रूप से चमड़े से बनी होती हैं और भारतीय गर्म जलवायु के लिए उपयुक्त मानी जाती हैं। इन्हें कभी-कभी प्राकृतिक रंगों के साथ सजाया जाता है और लकड़ी के तलवे तथा चमड़े की पट्टियों से बनाई जाती हैं।

इन चप्पलों का इतिहास कई शताब्दियों पुराना है — 12वीं सदी में इनका इस्तेमाल शुरू हुआ और GI (भूगोलिक संकेत) टैग के साथ वर्ष 2019 में इनके मूल का आधिकारिक दर्जा मिला।शाहू महाराज ने अपने समय में इन चप्पलों को लोक प्रसिद्धि दिलाई और कोल्हापुर में इनकी उत्पादन व्यवस्था को बढ़ावा दिया।



विवाद के प्रभाव और लोक प्रतिक्रिया

प्राडा विवाद के कारण भारतीय बाजार में कोल्हापुरी चप्पलों की ख़रीदारी बढ़ गई, और स्थानीय विक्रेता तथा कारीगरों को व्यापार में कुछ राहत मिली है। कई लोग सोशल मीडिया पर “Kolhapur 1, Prada 0” जैसे पोस्ट शेयर कर परंपरागत चप्पलों की स्थानीय पहचान को बढ़ावा दे रहे हैं।


निष्कर्ष: संस्कृति, सम्मान और वैश्विक फ़ैशन

प्राडा की यह पहल फैशन जगत में एक महत्वपूर्ण उदाहरण बन गई है कि किस तरह पारंपरिक भारतीय कला और डिज़ाइन को सम्मानजनक और टिकाऊ तरीके से वैश्विक मंच पर पेश किया जा सकता है। यह केवल व्यापार नहीं बल्कि सांस्कृतिक सम्मान और कारीगर समुदायों के सहयोग के नए मार्ग खोलने की दिशा में एक कदम है।


स्टोरी : फैशन डेस्क, ब्लेज़ बुलेटिन हिंदी 
फोटोज़ और वीडियो : pexels.com, pixabay.com  


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